पति को सौभाग्य देने वाले वट सावित्री व्रत का महत्व एवं पूजा विधान
पति को सौभाग्य देने वाले वट सावित्री व्रत का महत्व एवं पूजा विधान
पति को सौभाग्य देने वाले वट सावित्री व्रत का महत्व एवं पूजा विधान
वट सावित्री या वट अमावस्या का बहुत महत्व है।  शादीशुदा स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु के लिए इस व्रत को करती है।  जेष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को इस व्रत को किया जाता है। इस वर्ष 25 मई को यह व्रत किया जा रहा है।  इस व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है की आज के दिन ही बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री ने अपने पति सत्यभामा के प्राण यमराज से वापिस प्राप्त कर लिए थे।
पति को सौभाग्य देने वाले वट सावित्री व्रत का महत्व एवं पूजा विधान
पति को सौभाग्य देने वाले वट सावित्री व्रत का महत्व एवं पूजा विधान
पूजा का विधान –
प्रातः स्नान के पश्चात सोलह श्रृंगार करके एक बांस की टोकरी में सावित्री की मूर्ति रखते है एवं पूजा के लिए सप्तधान , मौली (कलावा), कुमकुम ,धूप -दीप ,अक्षत,पुष्प और प्रसाद लेकर वट वृक्ष का पूजन करते है।  सबसे पहले वृक्ष पर जल चढ़ाते है फिर कुमकुम अक्षत एवं सप्त धान से पूजन करते है एवं धूप दीप से आरती उतारते है। इसके बाद मोली से वट वृक्ष की सात परिक्रमा करते हुए वृक्ष के तने से सात वार मोली लपेटते है। वट के पूजन के वाद सावित्री की पूजा करते हुए वट के नीचे ही सावित्री और सत्यभान की कथा सुनते है।  कथा पूर्ण होने पर वट वृक्ष पर जल चढ़ाये और प्रसाद वितरण और दान पुण्य करके घर आकर व्रत खोलें।
वट सावित्री पूजा का महत्व – ऐसी पौराणिक मान्यता है कि  इस व्रत को करने से पति को लम्बी आयु मिलती है। घर में सुख शांति और समृद्धि आती है। यह व्रत संतान सुख को देने वाला है तथा सास ससुर और माता पिता को भी सुख शांति और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

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